ख्वाबो का बँटवारा

कल रात मैंने ख्वाबो का बँटवारा कीया था!
एक लम्हा इसको तो दूसरा  उसको दिया।
फीर मैं आरामसे अपने ख्वाब देखनेमें जूट गई।
पर आराममें आराम कहाँ ?
कोई तीसरा ही मुँह उठाये मेरे सपनों के देशमें घूसपैठ कर गया!
कितना बेअदब उफ्फ़… इंतहाई निर्लज्ज था वो!
मैंने उसके कान पकड़कर बाहर ढकेलने की बहोत कोशिश की,
पर वो हरामखोर टस से मस न हुआ।
दूर कोनेमें जाकर दुबक गया
और वहीं से मंद मंद मुस्काने लगा।
मुझे उसकी वो हँसी बहोत प्यारी लगी और उसीमें खो गई।
फिर सुना है की,
कल रातको मेरे कमरें में भूचाल सा आ गया था।
वो दो- तीन लोग
सपनेमें जगह ना मिल पाने की वज़ह से
बड़े मायूस थे और
एक दूसरे का हाथ पकड़कर, सर झुकाये चूप चाप कही दूर जा रहे थे।
-स्नेहा पटेल
12-12-2019

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