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  1. एक दिन जब सवेरे सवेरे
    सुरमई से अंधेर की चादर हटा के
    एक परबत के तकिये से
    सूरज ने सर जो उठाया
    तो देखा
    दिल की वादी में चाहत का मौसम है
    और यादों की डालियों पर
    अनगिनत बीते लम्हों की कलियाँ महकने लगी हैं
    अनकही, अनसुनी आरज़ू
    आधी सोयी हुई, आधी जागी हुई
    आँखें मलते हुए देखती है
    लहर दर लहर, मौज दर मौज
    बहती हुई ज़िन्दगी
    जैसे हर एक पल नयी है
    और फिर भी वही
    हाँ, वही ज़िन्दगी
    जिसके दामन में कोई मोहब्बत भी है, कोई हसरत भी है
    पास आना भी है, दूर जाना भी है
    और ये एहसास है
    वक़्त झरने सा बहता हुआ, जा रहा है
    ये कहता हुवा
    दिल की वादी में चाहत का मौसम है
    और यादों की डालियों पर
    अनगिनत बीते लम्हों की कलियाँ महकने लगी हैं…
    – फिल्म : “विर झारा” (2004) નું ગીત : “ક્યું હવા”…આ ગીતની શરૂઆતમાં યશ ચોપરા દ્વારા બોલાયેલી સરસ મજાની પંક્તિઓ…

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